मैं राम कृष्ण की ऋषियों की मैं पुरखों की सम्मानी,
हूँ मैं मानव की पूर्ण सभ्यता आदि अंत की गाथा,
मै शशि से शोभित और चमकता मुझपर ही रवि माथा,
मैं अधिपति गीता की तुलसीकृत रामायण ग्रंथों की,
मैं दान यज्ञ हूँ घोर तपस्या मैं महान संतों की,
मैं वैभवशाली हूँ महान व्यक्तित्व वीर पुत्रों की,
मैं ज्ञानपुंज की तथा धनी हूँ चतुर्वेद सुत्रों की,
मैं जिसे तरसता देवलोक भी वो सुरभित हरियाली,
मेरे ही आँगन में इठलाती सुबह शाम की लाली,
मैं जिसका गौरव गान गगन में मेघ गरज कर गाता,
फिर हे मानव पहचान मुझे मैं तेरी धरती माता।
- © अरुण तिवारी
Audio Of मैं सप्तसिंधु नंदन वन गंगा नगपति की अभिमानी