मैं निर्मल था मैं निर्मल हूँ
मैं निर्मल नित्य रहूँगा,
जितना भी जाऊँ और छला
सम गंगा धार बहूँगा,
मुझे मलिन करना है यदि तो
चाल अभी कुछ और चलो,
मुझे अभी तुम और छलो !
मैं निर्मल नित्य रहूँगा,
जितना भी जाऊँ और छला
सम गंगा धार बहूँगा,
मुझे मलिन करना है यदि तो
चाल अभी कुछ और चलो,
मुझे अभी तुम और छलो !
घात आघात तो रीत चरित
विघ्नों से घिर सकता हूँ,
पर सुनो तुम्हारे स्तर तक मैं
कभी नहीं गिर सकता हूँ,
मुझे तोड़ना ही है यदि तो
कुटिल शस्त्र कुछ और ढलो,
मुझे अभी तुम और छलो !
जलधिराज सम मैं अविचल हूँ
मन में कैसे क्लेश जगे,
ईर्ष्या तृष्णा घृणा जगे व
कैसे मन आवेश जगे,
मुझे डिगाने की कोशिश में
अभी हथेली और मलो,
मुझे अभी तुम और छलो !
-©अरुण तिवारी