नीरधार क्षीरधार रक्तधार अभंग हो ।
भारतीभिषेक हो तो शत्रुवक्ष भंग हो ।।
ललाट कांतिमान हो प्रबुद्ध दक्ष युद्ध में,
अंग अंग रण तरंग उद्दंड के विरुद्ध में,
अक्षि अग्नि से भरी हो अंश यज्ञकुंड हो,
प्रचंड आर्यवीर देख दंग शत्रुझुंड हो,
नीरधार क्षीरधार रक्तधार अभंग हो ।
भारतीभिषेक हो तो शत्रुवक्ष भंग हो ।।
हो शंख घंट व मृदंग देवहस्त मंजरी,
सिंधुसप्त रंगसप्त अखंड सप्त निर्झरी,
तरंग भृंगराज गाज संघ शक्तिपुंज हो,
प्रकांड संत ज्ञानवंत ब्रह्ममंत्र गुंज हो,
नीरधार क्षीरधार रक्तधार अभंग हो ।
भारतीभिषेक हो तो शत्रुवक्ष भंग हो ।।
मलय सुगंधि दक्षिणी विशुद्ध मंद मंद हो,
विहंगवृंद हो तुरंग सिंह हो गयंद हो,
बसंतनृत्य वंद्यगान वाद्य मेघतुल्य हो,
रश्मि कंचनी हो भारती सजी अतुल्य हो,
नीरधार क्षीरधार रक्तधार अभंग हो ।
भारतीभिषेक हो तो शत्रुवक्ष भंग हो ।।
अखंडराष्ट्र कीर्ति हो सजा मुकुट नगेश हो,
कुशब्द बोलता हुआ न शत्रु शीश शेष हो,
ओढ़ अरुणिमा दिशा हो सब सजी उमंग में,
भारती जगद्गुरु जगदंबिका के रंग में,
नीरधार क्षीरधार रक्तधार अभंग हो ।
भारतीभिषेक हो तो शत्रुवक्ष भंग हो ।।
चंड चंडिका ले शस्त्र भक्षिणी न रुद्ध हो,
शत्रु का हो खंड मुंड दंभ जो विरुद्ध हो,
किंतु हो प्रदीप्त दीप्त ग्रह नक्षत्र पक्ष में,
भारती खड़ी हो विश्व हो झुका समक्ष में,
नीरधार क्षीरधार रक्तधार अभंग हो ।
भारतीभिषेक हो तो शत्रुवक्ष भंग हो ।।
- © अरुण तिवारी